लेखक के दो शब्द


     मेरा सारा लेखन छत्तीसगढ़ पर केन्द्रित है । मेरी हिन्दी की कहानियों के अतिरिक्त महंत अस्मिता पुरस्कार प्राप्त उपन्यास प्रस्थान की पृष्ठभूमि भी छत्तीसगढ़ी है । आवा छत्तीसगढ़ी का मेरा पहला उपन्यास है ।
     अपराजेय अक्षर पुरूष स्व. हरि ठाकुर जी के आदेश पर मैंने इस उपन्यास का लेखन हाथ में लिया था । अग्रज श्री नन्दकिशोर तिवारी जी छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर में इससे पूर्व मेरी कहानी पुरस्कृत कर चुके थे । आवा को उन्होंने छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर में न केवल महत्व के साथ स्थान दिया अपितु मुझे लगातार प्रोत्साहित भी किया ।
     श्रद्धेय श्री हरि ठाकुर के संपर्क में लगभग बीस वर्षो से लगातार रहकर मैंने महसूस किया कि वे अपने आवे में समकालीन रचनाकर्मियों को बहुत सार सम्हाल के साथ रखते और पकाते थे । उन्हें छत्तीसगढ़ महतारी के वैभव का गायन सिखाते थे और इस तरह एक प्रभावी वाद्यवृंद उन मिट्टी की पक्की आकृतियों से ही वे तैयार कर लेते          थे । साहित्य के उस तपस्वी कुशल कुम्हार का आवा सदैव प्रक्रिया में रहा और रहेगा इसी आशा और विश्वास के तहत मैंने उपन्यास का नाम आवा दिया ।
     मैं आभारी हूं कि लोकाक्षर प्रकाशन ने इस उपन्यास को आगे बढ़कर पहले पहल सहर्ष प्रकाशित किया । आवा को निरंतर पढ़ते हुए श्रद्धेय श्री केयूर भूषण जी अपने कृपालु स्वभाव के अनुरूप उपन्यास की प्रशंसा में कलमतोड़ खत लिखकर मुझे सतत् प्रोत्साहित करते रहे । मैं ह्रदय से उनके प्रति आभारी हूँ ।
     आदरणीया डॉ. सत्यभामा आड़िल ने एम.ए. पूर्व के पाठ्यक्रम के लिए प्रकाशित  पुस्तक में इस उपन्यास को भी सम्मिलित किया । विगत छ: वर्षो से यह उपन्यास पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के हिन्दी एम.ए. पूर्व के पाठ्यक्रम में सम्मिलित है । कई महाविद्यालयों में मुझे इस उपन्यास पर व्याख्यान देने हेतु छात्रों के बीच बुलाया भी  गया । जिनमें कल्याण महाविद्यालय भिलाई एवं तामस्कर स्मृति शासकीय  कन्या महाविद्यालय दुर्ग प्रमुख है । अक्सर इस उपन्यास को मित्रगण और शोध करने वाले छात्र मांग बैठते हैं । छत्तीसगढ़ी के इस उपन्यास की लोकप्रियता को देखकर इसे पुन: अगासदिया प्रकाशन से नई सज्जा के साथ प्रकाशित किया जा रहा है ।

-परदेशीराम वर्मा

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